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भटकती आत्मा भाग - 29




भटकती आत्मा भाग – 29

मनकू माँझी जमुना बाड़ी से लौट जाना चाहता था l कर्मा का पर्व बीते दो दिन हो गए थे l इस बीच सरदार इतना व्यस्त रहा था कि मनकू माँझी को जाने की इजाजत मांगने का अवसर ही नहीं मिला l राघोपुर का सरदार भी मनकू माँझी को दो दिनों तक अपने यहां रखे रहा l परन्तु उसका मन अब रहने को नहीं था l शब्बो उससे बहुत घुलमिल गई थी l कई बार तृषित नेत्रों से उसने मनकू माँझी को देखा था परन्तु अपने दिल की आवाज उसे लज्जा वश नहीं बता सकी l  मनकू उन आंखों की भाषा पढ़ चुका था, इसलिए भविष्य की आशंका से कांप गया था वह | अपने दिल की बात वह किसे बताता l क्या है उसके दिल में,यह धन्नो के सिवाय कोई तो जानने वाला नहीं था यहां। उसके दिल की बात वह शब्बो को कह भी नहीं सकता था |
अभी भी एक चट्टान पर बैठा हुआ बीन बजाने का अभ्यास कर रहा था | मुंह की अजीब भाव भंगिमा तथा अजीब बेढंगी आवाज पर धन्नो खिलखिला कर हंस देती थी तो उसका भाई उसको डांट देता था, और पूर्ण मनोयोग से मनकू माँझी को बीन बजाना सिखाने का प्रयास कर रहा था |
जब मनकू को सीखने में असफलता मिली, तब खीझ कर उठ खड़ा हुआ तथा उसने धन्नो से कहा  -   "बहन आज मैं चला जाना चाहता हूं, तुम्हारा भाई तो मिल ही गया अब मुझे मुक्त करो"।  
अजीब सी कड़वाहट मन प्राण में समा गया,धन्नो व्यथित होती हुई बोली  -
   "यह मैं कैसे भूल जाऊं कि तुम्हारे कारण ही मुझे अपना भाई मिल पाया l मैं तो यह सोच कर खुश थी,कि अब मेरे दो-दो अपने भाई हो गये हैं l लेकिन तुम मुझे एक ही भाई देकर जाना चाहते हो"?
    एक और दो की बात छोड़ो,जरा सोचो उस बहन का क्या हाल हो रहा होगा, जिसका भाई यहां बैठा हुआ है"|
  "अरे तुम यह क्यों नहीं कहते कि अंग्रेज बाला की तुम्हें तो याद आ रही है"- 
  मुस्कुराती हुई धन्नो ने कहा l
  "तुम सब कुछ जानती ही तो हो, फिर क्यों रोकना चाहती हो"?
  "मैं नहीं गलतफहमी का शिकार कोई और हो रही है,पहले उसे तो समझा लो" -  धन्नो का इशारा शब्बो की ओर था l 
     मनकू माँझी फिर गंभीर हो गया,तथा सर पकड़ कर वहीं बैठ गया |
धन्नो का भाई बीन बजाता हुआ दूर खड़ा था और बिल से निकलते हुए सांप को देख रहा था।


         -    ×    -    ×    -    ×    -

"और...... वह...... वह...... मैगनोलिया मेरे मन प्राण में इस प्रकार बस चुकी है, कि चाह कर भी उसको मैं निकाल नहीं सकता | उसके कारण ही मेरी यह दशा उस दुष्ट मिस्टर जॉनसन ने किया | आज मैं यहाँ बैठा मैगनोलिया के लिए तड़प रहा हूं और वहां मैगनोलिया भी मेरी विरह वेदना में तिल-तिल कर घुल रही होगी l मैं उसकी छवि दिल से चाह कर भी नहीं निकाल सकता,फिर कैसे तुम्हें धोखा दूं ! तुम ही कहो शब्बो,मैं तुम्हारी जिंदगी कैसे तबाह कर दूँ ! नहीं मैं तुम्हारी जिंदगी तबाह नहीं कर सकता ! मेरा कोई अधिकार नहीं है तुम्हारी जिंदगी बर्बाद करने का ! वह प्यार तुम्हें मैं दे भी तो नहीं सकता जिस की कामना प्रत्येक लड़की को अपने पति से होती है l तुम अंधेरे में नहीं रहो शब्बो,इसीलिए अपनीआपबीती तुम्हें सुनाने पर मजबूर हुआ मैं l तुम व्यर्थ में मेरे साथ किसी स्वप्न का ताना-बाना मत बुनो l मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो,छोड़ दो मुझे स्वतंत्र शब्बो,मैं तुमसे माफी चाहता हूं" -
लगभग रोता हुआ मनकू माँझी ने  कहा l शब्बो की आंखें भी भीगने लगीं l उसने कहा   -  "मुझे माफ करना मनकू,मैं तुम्हारी बातें नहीं जानती थी l मैं एक तरफा प्यार का सपना संजो बैठी तुम्हारे साथ | मुझे खुशी है कि तुमने स्पष्ट रूप से मुझे सब कुछ बता दिया l प्यार करना कोई गुनाह नहीं होता,मैंने भी तुम्हें चाहा, प्यार किया | परन्तु हर प्यार करने वाले का मिलन हो ही जाए,कोई जरूरी नहीं | मैं अपने दिल पर पत्थर रख लूंगी,लेकिन तुम्हारे मार्ग का कांटा नहीं बनूंगी" -   फककर रोने लगी थी शब्बो |
  " मैं ऐसा अभागा हूं कि सबको मुझसे दु:ख ही पहुंचता है"|
     नहीं मनकू नहीं ! तुम अभागे नहीं, अभागी तो मैं हूं"!
   "तुम अपनी शादी धन्नो के भाई से कर लेना | मुझे उस से ही यह ज्ञात हुआ है कि वह तुमको चाहता है ।उसने कभी भी तुम्हें अपनी बहन नहीं माना, क्योंकि तुम भी उसे अपना भाई नहीं मानती थी l फिर धन्नो का एक भाई नहीं तो दूसरा भाई तो तुम्हारा पति हो ही सकता है"|
  हाँ मनकू तुम ठीक ही कहते हो | मैं अपनी मोहब्बत के फरिश्ता की बात ठुकरा नहीं सकती,जरूर उससे शादी कर लूँगी l शायद मेरी मोहब्बत भी यही कुर्बानी चाहता है"|
   उनकी बातों से बेखबर धन्नो दूर एक चट्टान पर बैठी थी | उसके कहने पर ही शब्बो यहां तक आ सकी थी | धन्नो ने उसे समझाया था,परन्तु मनकू का समझाना कुछ और ही अर्थ रखता था l फिर बेचारे मनकू का क्या दोष ? दोष तो शब्बो का था,जो बिना मनकू का दिल टटोले प्यार कर बैठी थी। परन्तु प्यार क्या कोई अवसर या पात्र देखता है ! नहीं प्यार किया नहीं जाता ! प्यार तो हो जाता है ! कब,कहाँ,किससे हो जाए कौन जानता है ! फिर इसके लिए वर्षों का समय भी नहीं चाहिए ! यह तो निमिष मात्र में हो जाता है ! यह ढाई अक्षर का ऐसा शब्द है जो संसार को चला रहा है,ईश्वर भी इस शब्द के पीछे दौड़ता रहता है,मदारी के बंदर के समान नाचता रहता है l इस शब्द पर जब सृष्टिकर्ता का ही वश नहीं है,तब मानव बेचारे का क्या वश हो सकता है ? 


         -   ×   -   ×   -   ×   -

मैगनोलिया दिन रात अब चलती फिरती लाश के समान जी रही थी। कलेक्टर साहब ने उसे समझाना चाहा,परन्तु एक आध बात कहकर हां-हूं करके उठ जाती थी | उसका अजीब व्यवहार हो गया था । चंचलता न जाने कहां लुप्त हो गयी थी। जीवन से कोई मोह नहीं रह गया था उसे जैसे। कलेक्टर साहब ने उसको खुश रखने का बहुत प्रयास किया,कई बार क्लब अटेंड करने को भी कहा। मिस्टर जॉनसन के साथ जंगल में घूम आने को भी कहा,परन्तु हर बार वह टाल गई। उसने साफ कह दिया  -  "पापा मुझे अपने हाल पर रहने दें,तंग ना करें,नहीं तो इस चलती फिरती लाश का दर्शन भी आप नहीं कर पाएंगे"|
कलेक्टर साहब इस कथन से विचलित हो गए | उन्होंने मिस्टर जॉनसन से भी कह दिया -   "तुम मैगनोलिया को तंग मत किया करो,समय आने पर सब ठीक हो जाएगा | अभी जख्म गहरा है, उतावलापन ठीक नहीं"|
  एक दिन कलेक्टर साहब ने एक मस्तिष्क विशेषज्ञ के परामर्श से वन भोज का आयोजन किया। उसमें अपने कुछ मित्रों को भी आमंत्रित किया। मैगनोलिया के मन बहलाव के लिए एक अजीब नृत्य मंडली को भी साथ ले लिया गया। इस नृत्य मंडली का काम अजीब भाव भंगिमा के द्वारा लोगों को हंसाना था। तीन मोटर कार में लदकर सभी पिकनिक स्पॉट की ओर चल पड़े। मैगनोलिया इस पिकनिक से बचना चाहती थी,उसे एकांत पसंद था, परन्तु उसकी एक न सुनी गई । लाचार होकर उसने वनभोज में सम्मिलित होने का अनमने भाव से स्वीकृति दे दिया।
गाड़ी जंगलों से गुजर रही थी। लगभग बीस किलोमीटर दूर यह लोग निकल आए थे। एक मैदान में पहुंचकर गाड़ी रुकी। यहां का दृश्य लोगों को बहुत ही पसंद आया था। जंगली पुष्प और लताओं से घिरा हुआ यह स्थान अत्यंत रमणीक था। यहां पर एक चट्टान था,उस पर उत्सुकता वश कलेक्टर साहब चढ़ गये। वहां से उन्हें कुछ दूरी पर एक झरना गिरता हुआ दिखाई पड़ा। खुशी से झूम उठे वे। कई साथी भी उनके निकट पहुंच गए थे। सभी ने झरना के नीचे का स्थान पसंद किया वनभोज के लिये। फिर तो काफिला उतरने लगा नीचे घाटी में।सरलता पूर्वक नीचे उतरा जा सकता था इसलिए कठिनाइयां नहीं हुईं। दुग्ध फेनिल जल नदी का रूप धारण कर आगे बढ़ रहा था। विशाल सफेद और चिकना चट्टान कुछ दूरी पर था। सब उसी पर बैठ गये। 
बावर्ची खाना बनाने के लिए आग जलाने का उपक्रम करने लगा। अंग्रेज अफसर अपने-अपने वस्त्र उतारकर नदी के पानी में पहुंचे स्नान हेतु। रजत वर्ण के जल से खेलते में उन्हें आनंद आ रहा था। परन्तु मैगनोलिया चुपचाप एक शिलाखंड पर जा बैठी,उसको किसी चीज में रुचि नहीं थी | वह अनवरत झर-झर झरते पानी को पागल सी बनी देखे जा रही थी | अब अपने आसपास के हलचल से वह बेखबर थी। मिस्टर जॉनसन ने उसको स्नान करने का निमंत्रण दिया,परन्तु उसने उसको एक बार खाली नजरों से देखा और चुपचाप बैठी ही रह गई | अंत में जॉनसन को अकेले ही नदी में उतरना पड़ा। कुछ देर पानी में अठखेलियां करने के बाद सब लोग कपड़े पहने लगे, त्पश्चात कुछ अल्पाहार के बाद सब अलग-अलग दल में बंट गये। कोई ताश खेल रहा था तो कोई कैरम बोर्ड पर हाथ चला रहा था,और कोई शतरंज के खेल में आनंद पा रहा था। कलेक्टर साहब ने मैगनोलिया से ताश खेलने का अनुरोध किया। वह अनमने मन से खेलने लगी। जीतने पर न कोई खुशी, न ही हारने पर कोई गम था उसको। लगता था वह  स्वयँ नहीं खेल रही है,बल्कि बालकों को खेलना सिखा रही है l सब लोग खेलते खेलते थक गये थे,भोजन भी अब तैयार हो गया था। 
लोगों ने चटकारे ले-लेकर मुर्गों पर हाथ साफ किया | मैगनोलिया ने उन लोगों का साथ दिया,परन्तु उसको खाने में कोई विशेष स्वाद की अनुभूति नहीं हुई | फिर वे लोग चट्टान पर लेट गए l नृत्य का प्रोग्राम पेश करने को कहा गया l थोड़ी देर में नृत्य आरंभ हुआ l वास्तव में यह नृत्य अजीब ही था l लोगों की हालत हंसते-हंसते बेहाल होने लगी,सब के पेट फूलने लगे,परन्तु मैगनोलिया के मुख पर मुस्कुराहट की हल्की रोशनी भी नहीं थी |
   मिस्टर जॉनसन मैगनोलिया की गंभीरता को देख कर अजीब सा चेहरा बना रहा था l सहसा मैगनोलिया उठ खड़ी हुई,वह घाटी से ऊपर चढ़ने लगी | बीन की आवाज कहीं दूर से आ रही थी, साथ ही साथ बंशी की मधुर ध्वनि कानों में शहद घोल रही थी l मैगनोलिया को बंसी की आवाज जानी पहचानी सी लगी, फिर गीत भी तो वही था जिसको मनकू हमेशा बजाता रहता था l लेकिन इस घनघोर जंगल में वह कहां से आ सकता है,वह तो ऊपर बहुत ऊपर चला गया है, कभी नहीं आने के लिए | फिर उसकी आवाज,कहीं भ्रम तो नहीं हो रहा है, मैगनोलिया को ? नहीं भ्रम नहीं,यह तो वास्तविकता है। उसके पैर ध्वनि की दिशा में बढ़ चले। इधर कलेक्टर साहब ने मैगनोलिया को नहीं देखा,तो उसे खोजने लगे। फिर उनकी निगाहें ऊपर चली गईं। मैगनोलिया घाटी के ऊपर कहीं चली जा रही थी, कलेक्टर साहब को भय हो गया, फिर कोई हादसा न हो जाए | यह सोचकर ऊपर चढ़ने लगे | उनके साथ-साथ कई लोग भी ऊपर आ गए, मैगनोलिया ने पीछे नजर दौड़ा कर देखा, लोग उसका पीछा कर रहे थे,वह घबड़ा गई। यहीं कहीं उसका माइकल छुपा बैठा है,यदि इन लोगों की निगाह में वह पड़ जाएगा,तब वास्तव में उसको यह लोग मार डालेंगे | यह सोचकर वह बेतहाशा दौड़ने लगी,मिस्टर जॉनसन भी पीछे से दौड़ने लगा | फिर तो सब दौड़ पड़े,ऐसा लगने लगा मानो कोई दौड़ प्रतियोगिता होने लगी हो | बंसी का संगीत सहसा बंद हो गया,फिर भी मैगनोलिया के कदम नहीं रुके वह तो संगीत के उद्गम स्थल तक लगभग पहुंच चुकी थी।
   परन्तु यह क्या ! उसका माइकल तो कहीं भी दिखाई नहीं पड़ा ! हो सकता है कोई और हो,एक ही गीत क्या कोई दूसरा व्यक्ति नहीं बजा सकता ! एक ही तान क्या दूसरा व्यक्ति नहीं छेड़ सकता ! क्या यह कोई दूसरा व्यक्ति नहीं हो सकता !
अचानक ठिठककर हतप्रभ सी खड़ी रह गई मैगनोलिया ! उसके सामने खड़े थे, एक आदिवासी युवक तथा दो युवतियां ! परंतु उसका माइकल नहीं था ! उन लोगों के मुख पर प्रश्नवाचक चिन्ह अंकित थे, यह देखकर घबड़ा गई मैगनोलिया ! अपनी दीवानगी पर आश्चर्य हुआ मैगनोलिया को !
उसकी निगाह आगे खड़े दूसरे चट्टान की तरह चली गई l उसने भागते हुए मनकू माँझी को एक नजर देख लिया,फिर उसकी दीवानगी चरम सीमा पर पहुंच गई l 
    "ओह डियर माइकल ! मेरा मनकू"! - कहती हुई चट्टान की तरफ बढ़ी वह,परन्तु पैर ने साथ न दिया,सिर चकराया और लहरा कर गिर पड़ी | चेतना विलुप्त हो गई,शायद मनकू माँझी के साथ ही जा चुकी थी उसकी चेतना !
शब्बो और धन्नो को दाल में कुछ काला नजर आया। उन लोगों ने अनुमान लगाया,शायद यही मैगनोलिया है,तभी तो माइकल और मनकू कह कर बेहोश हो गई। धन्नो को मनकू माँझी पर गुस्सा आया। यह कैसा प्रेम है - जब प्रेमिका उसके निकट पहुंची तब वह भाग खड़ा हुआ | उससे अपने को गुप्त रखने की कोशिश शायद वह करने लगा था |
  
           क्रमशः



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